Monday, October 1, 2007

Barsat

कल रात बारिश हुई थी
हर पत्ता नहा रहा था पर में सो रही थी।
आकाश से पानी बरस रह था और मुझे मनो कोई जगह रहा था
हर पल ये ही लग रह था कि जग कर बारिश को देखू और नींद को भुला दु
खूब शायरी आ रही थी पर फिर नींद ने घेर लिया और बाकी बारिश नींद में ही देखी ।
सुबह जब घड़ी ने जगाया फिर बहार को निहारना याद आया ।
चलो आंख खुल तो आलस तो नही आया बस्स बहार को देखना याद आया.

No comments: