Tuesday, April 29, 2008

मेरे बच्चे मेरी जान , कभी कभी करते हैं मुझे परेशान
हर हाल में मुझे याद दिलाते उड़ गए मेरे खुशहाल साल
सुबह होती हैं और दौड़ शुरू होती हैं, कही भी छोर नज़र नहीं आता
बच्चो कीही जिन्दंगी और बच्चो की ही बात हर पल उन्ही की साँस सुनाई देती हैं।

कहानी कही शुरू तो कही अंत होती हैं हर कहानी में पर बच्चो की परी जरूर होती हैं।
खिलौनों में बिखरी मेरी कहानी दोपहर तक एक डिब्बे में बंद होती हैं।
शाम जब घिरने लगती हैं तो शायरी नहीं रसोई के बर्तनों की चमक याद आती हैं
कहाँ पन्नों पर लिखने का शौक था पर अब तो घर घरस्तीके नुस्खे लिखने की बात होती हैं।

कही खो रहा हैं जीवन हर पल कहीं महक रहा हैं जीवन हर पल।
बच्चो के चहरे और चहरो पर हर मुस्कान में एक नज्म और एक शेर सा बनता सा लगता हैं।
कहाँ खो रहा हैं मेरा वक्त और कहाँ मेरा जीवन जा रहां हैं अफ़सोस कम मज़ा ज़्यादा दे रहां हैं .